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पेठा या कुम्हडा एक स्वादिष्ट फल है. भारत में इसके फल से मिठाई का निर्माण होता है. इसे व्रत में भी लिया जा सकता है .
आयुर्वेद ग्रंथों में पेठे को बहुत उपयोगी माना गया है। यह पुष्टिकारक,
वीर्यवर्ध्दक, भारी, रक्तदोष तथा वात-पित्त को नष्ट करने वाला है।
यह अम्लपित्त (एसिडिटी) में अत्यंत लाभदायक है. प्रातः काल पेठे की मिठाई दूध के साथ सेवन करने से अम्लपित्त में आराम मिलता है.
कच्चा पेठा पित्त को समाप्त करता है लेकिन जो पेठा अधिक कच्चा भी न हो और
अधिक पका भी न हो, वह कफ पैदा करता है किन्तु पका हुआ पेठा बहुत ठंडा,
ग्राही, स्वाद खारी, अग्नि बढ़ाने वाला, हल्का, मूत्राशय को शुध्द करने वाला तथा शरीर के सारे दोष दूर करता है।
यह मानसिक रोगों में जैसे मिरगी, पागलपन आदि में तो बहुत लाभ पहुंचाता
है। मानसिक कमजोरी-मानसिक विकारों में विशेषकर याद्दाश्त की कमजोरी में
पेठा बहुत उपयोगी रहता है। ऐसे रोगी को 10-20 ग्राम गूदा खाना चाहिए अथवा
पेठे का रस पीना चाहिए।
शरीर में जलन-पेठे के गूदे तथा पत्तों की
लुगदी बनाकर लेप करें। साथ-साथ बीजों को पीसकर ठंडाई बनाकर प्रयोग करें।
इससे बहुत लाभ होगा।
नकसीर फूटना- पेठे का रस पीएं या गूदा खाएं। सिर पर इसके बीजों का तेल लगाएं। बहुत लाभ होगा।
दमा रोग – दमे के रोगियों को पेठा अवश्य खिलाएं। इससे फेफड़ों को शांति मिलती है।
खांसी तथा बुखार- पेठा खाने से खांसी तथा बुखार रोग भी ठीक होते हैं।
पेशाब के रोग- पेठे का गूदा तथा बीज मूत्र विकारों में बहुत उपयोगी है।
यदि मूत्र रूक-रूककर आता हो अथवा पथरी बन गई हो तो पेठा तथा उसके बीज दोनों
का प्रयोग करें। लाभ होगा।
वीर्य का कमी- इस रोग में पेठे का सेवन अति उपयोगी है।
कब्ज तथा बवासीर-पेठे के सेवन से कब्ज दूर होती है। इसी कारण बवासीर के
रोगियों के लिए यह बहुत लाभकारी है। इससे बवासीर में रक्त निकलना भी बंद हो
जाता है।
भूख न लगना- जिन लोगों की आंतों में सूजन आ गई है, भूख नहीं
लगती, वे सुबह दो कप पेठे का रस पीएं। भूख लगने लगेगी और आंतों की सूजन भी
ठीक हो जाएगी।
खाली पेट पेठा खाने से शारीर में लचीलापन और स्फूर्ति बनी रहती है .
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